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स्वतंत्रता की जश्न मनाऊँ

स्वतंत्रता की जश्न मनाऊँ
या परतंत्रता की दास्तां सुनाउँ मैं ।
मैं भारत की धरती हूँ ।
क्या-क्या बताऊँ मैं?

कुछ लोग जहां मे हमारी पूजन करते है,
तो कुछ जहां में हमारी खण्ड को अपमानित करते है ।
सहती आई हूँ मैं सदियों से ।
मौन ही रहती हूँ सदा मै ।
लेकिन मेरे पुत्रों ने मेरी लाज बचायी है ।
कोई राम बनके, कोई कृष्ण, कोई बोस, आजाद तो कोई सिंह बनके ।
मेरी मिट्टी को मस्तक पे लगाया है ।
स्वतंत्र की जश्न मनाऊँ
या परतंत्रता की दास्तां सुनाऊँ मैं ।।
कवि विकास कुमार

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