हमें ये नया साल नहीं स्वीकार दीपक पनेरू 4 years ago हमें ये नया साल नहीं स्वीकार जिसमें वही हालात, वही हार देश में मचा हुआ है हाहाकार कविता हुई है अब लाचार ठिठुर रहा गणतंत्र है जनता कुहरे में कहीं गुम है घर -घर है अभी तक गरीबी जन कर रहा गुहार हमें ये नया साल नहीं स्वीकार