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हाँ,, मैंने लोगो को बदलते देखा हैं!!

हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!
उनके जज्बाती हम को अहम बनते देखा हैं,
कल तक जो सबको साथ लेकर चलने की बात करते थे,,,
आज उनके खिलाफी ख्वाबो को भी अनाथ होते देखा हैं!!

गलत सोचता था कि नाराजगी,,
होती हैं चाँद लफ्जो की दगावाजी,,
उनके प्यारे सावन से मिलकर जाना,,
ये तो सुनामी की हैं कलाबाजी!!
मगर सुनामी से ही सागर को उझड़गते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!

तुझे भी दगा देना हैं तो शौक से दे दिल,,
हम तो साँसों से भी काम चला लेंगे,,
घुट घुट कर जी जाऊंगा मैं इतना कि,
सावित्री की याद यमराज को दिला देंगे!!
अधूरेपन से खुद को आबाद होते देखा हैं,,
हाँ,, मैंने लोगो को खुद में ही बदलते देखा हैं!!

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