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हीर-रांझा

बंदिशें कितनी लगाई गईं
पहरे कितने दिये गए
फिर भी ना मिट सकी मोहब्बत
हीर-रांझा कितने ही चल बसे
प्रगाढ़ होती गई मोहब्बत
हद से बढ़ता गया जुनून
जितनी तकलीफें मिली
मजनुओं को सब सहते
चले गये
रात-दिन की यही हालत है
जो भी प्यार के पंछी हैं
जीते रहे मोहब्बत में
और मोहब्बत में ही मर गये…

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