मुकद्दर में ज़्यादा हम मानते नहीं हैं
हाथों की लकीरों को पहचानते नहीं हैं
भरोसा है हमें अपनी ही लगन पर
बस उसे ही अपना ख़ुदा मानते हैं
कभी कहीं हो जाए हमसे चूक कोई
ख़ुद ही से ख़ुद के जवाब मांगते हैं
और ख़्वाब देखते हैं सुहाने अपने मन से
किसी से कुछ भी कहां मांगते हैं
पत्थर को तोड़ कर कंकर बना दे
हम ऐसा भी हुनर जानते हैं
_______✍️गीता