Site icon Saavan

ग़ज़ल

ये माना कि ; मैं तेरा ख्बाब नहीं हूँ ।
मगर फिर भी ; इतना ख़राब नहीं हूँ ।।

नशे–सा मैं; चढ़ता–उतरता नहीं ।
सुराही सब्र की हूँ ; शराब नहीं हूँ ।।

मुझे पता है कि ; तू ! भुला न पायेगी ।
सुलगता सवाल हूँ—- जवाब नहीं हूँ ।।

रुबरू रुह होगी मेरी; तुझसे तो ये पढ़ना।
नंगा सच हूँ ——सस्ती किताब नहीं हूँ ।।

मैं खुशबू हूँ–हिना हूँ; याद–ए-सफीना हूँ ।
नहीं हूँ तो रिश्तों का अजाब नहीं हूँ ।।

उम्र “अनुपम” तमाम ख़र्च यूँ ही होनी थी ।
रंज़ औ—ग़म का मगर हिसाब नहीं हूँ ।।

Exit mobile version