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ज़िन्दगी के भंवर में….

किस्मत से डरी हुई हूँ मैं
ज़िन्दगी के भंवर में
फंसी हुई हूँ मैं ….

तेरी स्मृतियों की दासी हूँ
हालतों की दुविधा से
सहमी हुई हूँ मैं …..

गमों की आंधियों ने
झकझोर दिया है जीवन
याद ही नहीं है मुझे
आखरी बार कब हँसी हूँ मैं?….

मेरे परिजनों ने खुद से
बाँधे रखा है मुझको
पता ही नहीं चला
कब बड़ी हुई हूँ मैं….

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