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ज़िन्दगी खफा है अब मनाऊँ किस तरह

ज़िन्दगी खफा है अब मनाऊँ किस तरह
दिल पे चोट है अब मुस्कुराऊँ किस तरह

चोट कोई अंदर है जिससे टिस उठती है
चिर से दिल दर्द अब दिखाऊँ किस तरह

आँखों के तलवों निचे,काई जमी रहती है
आँसुओं को आँखों में छिपाऊँ किस तरह

न सोता है न चैन से मुझे सोने देता है
दिल को अपने अब बहलाऊँ किस तरह

जल जल के हिज्र में दर्द खीरा हो गया
भीतर लगी आग को बुझाऊँ किस तरह

दिल तो सीने से “पुरव” निकलता नहीं
दर्द-ए-दिल ग़ज़ल में सुनाऊँ किस तरह

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