ज़िन्दगी जैसे शतरंज की बिसात हो गई,
जिसने समझ ली उसकी जीत ना समझा जो उसकी मात हो गई,
ज़िन्दगी जैसे……
बंट गए हैं चौंसठ खानों में हम कुछ इस तरह,
जैसे खाने से हटते ही मोहरे की काट हो गई,
ज़िन्दगी जैसे….
तलाशते हैं खामियां अब लोग कुछ इस तरह,
जैसे किले से निकली और रानी कुरबान हो गई,
ज़िन्दगी जैसे….
राही (अंजाना)