इस तरह उलझी रही है जिन्दगी,,,,,,
कोन कहता है सही है जिन्दगी।।।।।
उलझनो का हाल मै किससे कहु,,,
आँख के रस्ते बही है जिन्दगी।।।।
अब नही पढना नशीब में इसे,,,
गर्द सी मुझपे जमी है जिन्दगी।।।
ना सुकूँ है दिल बडा बेचैन है,,,
आग के जैसे जली है जिन्दगी।।।।
उलझनो में ही सदा उलझा रहा,,,,
मकङियो के जाल सी है जिन्दगी।।।
ख्वाब है ना आखँ में नींदे कहीं,,,,,
खार सी चुभने लगी है जिन्दगी।।।
फुरसतो के पल नही मिलते मुझे,,,
काम में ऐसी दबी है जिन्दगी।।।।
मन्जिलो का भी निशाँ मिलता नही,,,,
कोन से रस्ते चली है जिन्दगी।।।।।