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ज़ेहन में बैठे

ज़ेहन में बैठे कई अफ़सोस है
बोलते सन्नाटे जुबां खामोश है

अब वज़ूद कछुए का मिट गया
बाज़ी जीतता सोता खरगोश है

राजेश’अरमान’

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