ज़ेहन में बैठे

ज़ेहन में बैठे कई अफ़सोस है
बोलते सन्नाटे जुबां खामोश है

अब वज़ूद कछुए का मिट गया
बाज़ी जीतता सोता खरगोश है

राजेश’अरमान’

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*दोस्ती*

*****हास्य – रचना***** कछुए और खरगोश की, पांच मील की लग गई रेस तीन मील पर खरगोश ने देखा, कछुआ तो अभी दूर बहुत है…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

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