इन हसरतों के बाजार में खून के रिश्ते भी टूट जाते हैं,
सियासत की तंग गलियों में कुछ अपने भी छूट जाते हैं।
अहंकार पाले बैठें हैं जो उनको कोई समझाये भी कैसे,
जो जरा सी बात पे ही अपने भाई से भी रूठ जाते हैं ।।
इन हसरतों के बाजार में खून के रिश्ते भी टूट जाते हैं,
सियासत की तंग गलियों में कुछ अपने भी छूट जाते हैं।
अहंकार पाले बैठें हैं जो उनको कोई समझाये भी कैसे,
जो जरा सी बात पे ही अपने भाई से भी रूठ जाते हैं ।।