इन हसरतों के बाजार में खून के रिश्ते भी टूट जाते हैं,
सियासत की तंग गलियों में कुछ अपने भी छूट जाते हैं।
अहंकार पाले बैठें हैं जो उनको कोई समझाये भी कैसे,
जो जरा सी बात पे ही अपने भाई से भी रूठ जाते हैं ।।
Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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behatreen janaab
Thank You Sir ji 🙂
Bhoot khoob sir
Thank You Mam 🙂
KYA KHOOB KAHI
Thank You Sir ji 🙂
jang chij h asi lado to veer kahlawo na lado to kayer ….
hasil kuch nahi hota jang se par sabak de jati h es jamane ko.
Wah bhai 🙂
वाह
Good
Good