क्यों नहीं कहता जो फ़साना है तेरा ये कैसा बेमान अफसाना है तेरा
क्यों बना बैठा है वो बुत जो पूजा जाये ये किसकी परस्ती है की वो छा जाये
क्यों नहीं तोड़ता तू ये तमाम बेड़ियांक्यों नहीं छोड़ता तू ये तमाम देहरियां
तेरी बेईमानी तेरा इमान क्यों है ऐ दिल, तू इतना बेजुबान क्यों है