चाहत

कभी कभी दिख भी जाया करो हुज़ूर,डर रहता है कहीं देखने की चाहत ही ना खत्म हो जायें |

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

इतना चाहती हूँ

इतना चाहती हूँ इतना ना इतराया करो,बेरूखी में, ना दिन जाया करो यूँ दूर ना मुझसे रहो,बुलाने से पहले आ जाया करो क्यू खामोश हो…

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