जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।

जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।

वो तो था ही नही कभी रहगुज़र अपना।।

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तुमको मुबारक हो भीड़ इस दुनिया की।

हम काट लेंगे तन्हा ही ये सफर अपना।।

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भूल गए हो यक़ीनन तुम अपने वादे सारे।

पर उदास रहता है वो गवाह शज़र अपना।।

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न कोई मुन्तज़िर है न है कोई आहट तेरी।

फिर भी सजाता है कोई क्यू घर अपना।।

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ऐ बादल बरसों ऐसे भीगों डालो सबकुछ।

की साहिल जलता बहुत है ये शहर अपना।

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