मैदान ए जंग

ज़िन्दगी की जंग के मैदान में,
तुम भी खड़े हो मैं भी खड़ी हूँ।
फ़र्क है तो इतना की मैं किसी को मारना नहीं चाहती,
और तुम किसी और से मरना नहीं चाहते।

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