रंगों का खेल
रंगों से ही समा बांधे जाते हैं, रंगों से ही ये ज़मीं आसमां जाने जाते हैं। जनाब पर अब तो रंग भी धर्म के नाम पर बाँट दिये जाते हैं, और ये रंग गुरूर की मिसाल बन जाते हैं। रंगों के कारण भेद भाव होता देखा है, पर अब तो रंगों के साथ भेदभाव होता है। डर लगता है प्रकृति हरी देख कर मुसलमान को न दे दें, खून लाल देख कर हिंदू का हक न जम जाए। गुज़रिश् है की रंगों को मन की खुशियाँ ही बढ़ाने दो, वरना जहाँ में भी सर... »