रिंद

बेक़रारी का आलम है, दीवाने की मानिंद।
ना सहरे-सकूँ मिलता, ना आती शबे-नींद।
तेरी आँखों से पिया करते थे जामे-शराब,
तेरी जुदाई में अब कहीं, हो ना जाऊँ रिंद।

देवेश साखरे ‘देव’

रिंद- शराबी

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