सब पहले जैसा है
माँ तेरी निश्छल ममता की, छाया नशा कुछ ऐसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें, हाँ सब पहले जैसा है
आज भी माँ की आँचल में उम्मीदों की मोती पाती हूँ
सुख की घङियो में उसकी दुआओं को देखा करती हूँ
लाचारी- बीमारी की बेला में उसको ही ढूँढा करती हूँ
आज भी मेरे चंचल मन में चाहत लङकपन जैसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें हाँ सब पहले जैसा है ।
आज भी तेरी हाथों की खुशबू अपने बालों में पाती हूँ
करके दो चोटी बेटी की, मै भी तुझ -सी बन जाती हूँ
पसीने से लथ-पथ जब गृहिणी का फर्ज निभाती हूँ
तुझे खुद में देख के माँ, थककर भी, खुद पे इतराती हूँ
माथे पे हल्दी, गालों पे आटे की निशानी तेरे जैसा है
कुछ भी तो नहीं बदला हममें हाँ सब पहले जैसा है ।
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद
मां को याद करती हुई बहुत ही भावुक रचना
सादर आभार गीता जी
बहुत ही सुंदर रचना