मुस्कुराता हूँ

मुस्कुराता हूँ ग़म को, लिखता जाता हूँ,
क़त्ल कर जिंदगी को, मैं जीता जाता हूँ।

पन्ने पलटता हूँ जब जिंदगी की किताब के,
तेरा नाम ही, हर वरक़1 पर मैं पाता हूँ।

जो बातें रह गई थीं अधूरी हमारे दरमियान2,
वक्त-बेवक़्त उन्हीं को बस मैं गुनगुनाता हूँ।

क्या है इश्क़, इसका इल्म3 तो नहीं है हमें,
हर जगह तुम्हें ही बस साये-सा मैं पाता हूँ।

ख़ुशी के परिंदे उड़ गए, छोड़ मेरे मकाँ को,
ग़म के घोंसले हर तरफ़ फैले हुए मैं पाता हूँ।

बुलाते हैं अक्सर वो भी हमें अपनी बज़्म4 में,
ग़ैरत5 इतनी है मुझमें कि जा नहीं मैं पाता हूँ।

1. पन्ना; 2. बीच में; 3. ज्ञान; 4. महफ़िल; 5. स्वाभिमान।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close