आई सावन की फुहार ,
छाई रूत में खुमार,
घटाएं छाई है घनघोर,
रह-रहकर दामिनी दमके,
हवाएं मचा रही शोर,
बारिश की लगी है झडी,
जैसे झरनों की हो फुलझड़ी,
भीगा भीगा सा ये रुत है ,
भीगा भीगा सा यह मन है,
भीगा भीगा सा यह तन है,
मयूरा नाच रहे छमाछम,
कोयल भी लगा रही है तान |