26 जनवरी पर ( गरम दल की शायरी )
शोर बहुत है बाहर.. कि अंदर चुप ; अब रहा नहीं जाता ! क्या कहूँ उन बहरों से इस दिल की बात.. बिना धमाके के…
शोर बहुत है बाहर.. कि अंदर चुप ; अब रहा नहीं जाता ! क्या कहूँ उन बहरों से इस दिल की बात.. बिना धमाके के…
हमें दुश्मन समझ कर बङा पछताओगे आप ! करके भरोसा खुद्दारों पर… अरें ! करके भरोसा खुद्दारों पर.. खङे-खङे ही गिर जाओगे आप !! हमें…
कभी किसी के सामने वफ़ा का नाम मत लेना ! कभी.. किसी के सामने वफ़ा का नाम मत लेना ! मेरे यार… बदनाम हो जाओगे…
अच्छा हुआ जो तुम… न आये मेरे जनाजे में , आज तो दफना ही दिया जाता हमें… जनाब ! अगर वक्त पर हिचकियाँ न आती…
जब तक साँसें चली गैरों ने गुंजाईश रखी हमे जलाने की… कि जब धङकन थमी तो अपनों ने जला दिया !! :- सोमू आचार्य
अपनी शाम को शमा पर लुटाने निकला परवाना हूँ मैं ! जीता हूँ जिसके लिए, मरता हूँ जिसके लिए… उसकी हर हरकत का अफसाना हूँ…
अँधेरे में हवा का झोका भी बनकर साया सा नजर आता है ! जब दिल-ओ-दिमाग खो दे सुध… तब मेरे यार.. अच्छा खासा *चोराया भी…
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