Author: Ambrish
साथ चलते हैं।
साथ चलते हैं। चल साथ चलते हैं। मंज़िल की छोड़ ना!! इस बार हम राह चुनते हैं। गुज़रते जायेंगे लम्हें हर लम्हों को कहीं…
“कोई ओर नहीं कोई छोर नहीं”
“कोई ओर नहीं कोई छोर नहीं” मैं चाँद नहीं वो प्रचलित तारा ध्रुव भी नहीं मेरे दिखने का कोई दिन नहीं पूर्णिमा नहीं अमावस्या भी…
सो जाते हैं हम
सो जाते हैं हम अधूरेपन की थपकी उधेड़बुन वाली लोरी कल परसों की सिसकी और किसी दी हुई हिचकी लिए सो जाते हैं हम…
यपूर्व की हवाएँ
पूर्व की हवाएँ जब भी बदलता है मौसम वसंत के बादऔर ग्रीष्म के पहले का लंबा अंतराल तो सूर्य के विरुद्ध जा कर पुरबवैयाँ…
महीने का अंत
ज़िन्दगी गरम तवे सी हो रखी है। ऐसा-वैसा तवा नहीं। महीने भर खर्चों की आग में सुलगता तवा!! गरम तवे को राहत देने महीने भर…