मुक्तक
आजकल थोड़ा खफा सा रहता है जग रहा मगर सोया सा रहता है पर जाने क्या है मजबूरी उसकी वो बैठा हुआ थका सा रहता…
आजकल थोड़ा खफा सा रहता है जग रहा मगर सोया सा रहता है पर जाने क्या है मजबूरी उसकी वो बैठा हुआ थका सा रहता…
आँख मलती जग रही बिटिया मुँह बनाती | ठप्प दुकान नहीं कोई ग्राहक बुरा समय | गलियाँ तंग आवाजाही हो रही चुभे दीवार | अशोक…
फूटी मटकी रख दयी, माटी लेप लगाय पानी पल पल रिस रहा, मन भी धोखा खाय। अशोक बाबू माहौर 10 /12 /2018
हथेली पर सपनों की घड़ियाँ साकार नहीं। नदी के पार रेत के बडे़ टीले हवा नाचती। अशोक बाबू माहौर
हथेली पर सपनों की घड़ियाँ साकार नहीं। नदी के पार रेत के बडे़ टीले हवा नाचती।
लौट आने दो उस हवा को गुनगुनाने दो उस हवा को वह आयी है गीत सुनाने थरथराने दो उस हवा को। अशोक बाबू माहौर
मिलकर साथ हाथ मिलायें खुद जागें और जगायें स्वच्छ भारत अभियान सफल बनायें। गली मोहल्ले गंद मुक्त हो सड़कें स्वच्छ चमके देहरी द्वार महक उठे…
संस्कार में दबे बच्चे से घूरते हुए अध्यापक ने सवाल पूछा, बेटा ये बताओ हम कौन? बच्चा मुस्कुराते बोला, अध्यापक जी आप गुरु हम शिष्य…
उडता पंछी नील गगन फैला विशाल हाथ।
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