भुख
दोपहर के समय चिलचिलाती धूप में चिथडे पहने नंगे पाँव घुमती नन्ही सी जान भुख से बिलखती पेट की आग के लिए कई दुख सहकर…
दोपहर के समय चिलचिलाती धूप में चिथडे पहने नंगे पाँव घुमती नन्ही सी जान भुख से बिलखती पेट की आग के लिए कई दुख सहकर…
एक बेकस इंसान समाज का जो अंग है समाज से विभंग है समाज से वो दूर है बेबसी से मजबूर है चाहता है वो भी…
अब तक सुलग रहा है उठ रहा है धुंआ धुंआ सा इक रिश्ता जलते जलते रह गया है जरा जरा सा कुछ बीज मुहब्बत के …
आजादी चंद सिरफिरे ही थे जो लेकर आये थे उसे फिर उनसे हाथ छुड़ा जाने कहां खिसक गई अब सुनते हैं कि ठहरी है रसूखदारो…
बरसों पहले बंटी थी मरकज से गणतंत्र के नाम पर कोई आजादी जैसी चीज चंद गिने-चुने रसूखदारो के बीच ये सिलसिला फिर यूँ ही साल…
मिजाजे यार ने हैरत में डाल रखा है रकीबो से ये जो रिश्ता कमाल रखा है सुब्ह से शाम तलक ख्वाहिशों को पाला है ए…
बडी कश्मकश है मौला थोडी रहमत कर दे.. या तो ख्वाब न दिखा, या उसे मुकम्मल कर दे
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.