जमाने बीत गए जिनको भुलाये हुए आजफिर हैं क्यो याद वही आये हुए कितने बेरुखी से तोड़े थे वो दिल को दिल के टूकड़ो को…
Author: Vipul
मुक्तक
यूँ ही रोशनी नही होती, मोम को जलना पड़ता है यूँ ही चाहत नही मिलती इश्क़ की हद से गुज़रना पड़ता है “विपुल कुमार मिश्र”…
ग़ज़ल
अक्सर खुशी का रिश्ता ग़म से होता है इसीलिए हँसी में भी आँख नम होता है मेरे हाल पर हँसने वालों ज़रा गौर करो…
तू तो नही पर तेरी कहानी याद आयी सबको भूले पर तेरी जफ़ा याद आयी तेरे लिक्खे सब ख़तों को जला दिए पर तुझपे लिखी…
मुक्तक
गुमशुम,मदहोश,खामोश कहाँ रहते हो वो क्या कहते है,हाँ मोहब्बत में रहते हो वो सुर्ख होंठ,क़ातिल नज़र बला की अदा एक दीद में क़त्ल का सामान…
ग़ज़ल
वो लोग भी एक खास ही जगह रखते है जो वक़्त पर मेरे सामने आईना रखते है कोई क्या लगाएगा मेरे वफ़ा का अंदाज़ा…
मुक्तक
आज भी मुझमे कही तुम रहते हो मै तो अनपढ़ हूँ, तुम लिखते रहते हो धड़कनो के सुर पे जब साज़ लगते है मै तो…
इश्क़ का मज़ा तो सिर्फ बिछड़ने से आये वो आशिक़ी ही क्या जिसमे शादी हो जाये ‘विपुल कुमार मिश्र
चलो दर्द में भी मुस्कुराते हैं यादो के साथ टकराते है तुम आओ तो सही मिलकर दर्द को आंख दिखाते है #VIP~
अक्सर हंसी का रिश्ता ग़म से होता है इसीलिए खुशी में भी आँख नम होता है #VIP~
ग़ज़ल
तेरे दुआओं में असर देखना है अब तो ज़हर पी के देखना है तन्हाई में बहुत बसर कर लिए अब तो महफिलों में तन्हा देखना…
ग़ज़ल
ग़म को आराम नही होना चाहिए अब तुम्हें हार ऐलान करना चाहिए अपने साये को खुद पत्थर मारेंगें शर्त है कि दोस्त खुश होने चाहिए…
ख़्वाहिश है कि कोई ख़्वाहिश न रहे लौट आओ की अब हम – हम न रहे #VIP~
उनके के होंठो से लफ्ज़ चुराकर उनके ही कानो तक पहुचाया है और वो पूछते है …. आपके शब्दों में दर्द कहा से आया है…
मुक्तक
ये पूनम की रात भी बड़ी अजीब होता है पास इसके भी किस्से कई महफूज होता है कुछ हसीं तो कुछ दर्द – ऐ –…
ये बरसात भी मुझसे कुछ कह रही है मै ही नही मेरी याद में वो भी रो रही है
ग़ज़ल
ये मदहोश शाम और तन्हाई का आलम अपनों के बारे में न सोचते तो क्या सोचते करीब-ए-मर्क़ है फिर भी अकेले इसलिये खबरी के…
पागल,आशिक़,आवारा ही रहा आइनों के हर टुकड़े में मै ही रहा तू ने बेवफाई की इन्तहां कर दी मै की तेरे साथ वफादार ही रहा…
मुक्तक
चाँद से गुफ़्तगू में सितारे गिनते रह गए हम तो मोम थे रात भर जलते रह गए बस यही एक भूल हमसे सरेआम हुई भूलना…
विपुल कुमार मिश्र की कलम से
आँख की कीमत आशुओं से है और दर्द ने दिल को दिल बनाया है हम तो रह जाते सीधे-सादे ही दोस्तों ने हमे भी मतलबी…