दीपावली है खुशियों का त्योहार पर
यहां सब इसे प्रदूषण का जरिया बना बैठे हैं,
यहां सभी बहरे बन बैठे हैं,
लगता है कानों में तेल और रुई दे बैठे हैं,
फिक्र नहीं कोई जिए या मरे,
यहां तो सभी दिल के फकीर बन बैठे हैं,
रब ने इतना कुछ दिया इन्हें,
फिर भी खुशियां यह दूसरों को रौंदकर मना बैठे हैं,
,पटाखे छोडे है इन्होने इतने कि अब ये दिन को शाम बना बैठे है,
दम घुट रहा है लोगों का यहां यह पटाखे पर पटाखे जलाए बैठे हैं,
कौन समझाए इन्हें हम सभी लाचार बन बैठे हैं |