चिर परिचित जब कोई आ टकराता ख्वाब में,
फिजा का हर रंग तब घुल जाता शवाब में।
स्वप्न सुनहरा पलकों पर घर कर लेता,
रात छोटी पर जाती ख्यालों के ठहराव में।
वक्त का फासला मिट जाता एक सांस में,
कोई फर्क ना रहता उस मोड़ इस पड़ाव में।
धुंधली सी सही चंद तस्वीरें उभर आती,
जो कभी दूर छुटा वक्त के बहाव में।
ख्यालों के साथ साथ रात झुमने लगता,
ऐसा नशा नहीं मिलता कभी शराब में।