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Ghazal

हथेली से रेत की तरह पल पल सरकती जिंदगी,
फिर भी जाने क्यों आग की तरह भड़कती जिंदगी।
मुकाम मौत ही तो है इसका,
लाख पहरा दो उसी ओर बढ़ती जिंदगी।
पर खुद को सदा के लिए मान,
कुछ जिंदगी को रौंदती जिंदगी।
ये दुनिया तो बस तमाशा है,
जहां कभी बंदर कभी मदारी बनती जिंदगी।

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