स्वाभिमान का आवाहन

February 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तिरंगे के नीचे शान्ती के घोष में,

मिशाले जलाली खूब हमनें!!

मान मर्यादा स्वाभिमान का आवाहन,

हाथो में बंदूके तलवारें उठाना हमकों!!

इतियास दुहरा रहा गजनी की चाल,

फिर से वगदादी दुहरा रहा हैं !!

नवयुवको का ब्रेनवास करकें वो,

भारत के ख़िलाफ़ हथियार जमा रहा हैं!!

खुले आकाश के नीचे वो ,

देशद्रोह के नारे लगवा रहा हैं !!

आंतकवादी अफजल कसाव को वो ,

शहीद कलाम पढवा रहा हैं !!

कश्मीर सरजमीं पर लहरातें,

आई ए एस के झण्डे लहरा रहा हैं !!

युवको के चहरे के पीछे वो,

देशद्रोह की शादशे खेल रहा हैं !!

देश प्रेमी के आँखो में खून उवला,

देश के गद्दारो को सरे आम झुलाना हैं !!

एक पल ठहर कर विचार कर ??

देना हैं शंतरज के खिलाङी को मात!!

चाबुक हे जिसके हाथो में वो,

उस शीष को काट गिराना हैं !!

आई ए एस घुषपेठ को हमकों ,

भारत के जङ से मिटाना हैं !!

सुनो नौ जवानो मेरे देश के बंदे,

वीर गाथायें हमसे हिसाव चाहती हैं !!

खून बहाकर क्या 2 जुल्म सहकर,

हमनें तब आज़ादी पाई थी !!

अब और कोई गजनी बगदादी ,

ईरान जैसे वगदाद न बना पायें !!

चुन चुन कर गद्दारो को देश से ,

नरक परलोक पहुँचाना हैं !!

अधर्म पर धर्म का विजय घोष बजा,

सविधान की बेङियों को खोल दो!!

देश में देशद्रोह कहने वालों को ,

सुस्ती कार्यवाई को चुस्त फ़ैसला कर दो!!

जिन हाथो में शान्ती की मिशालें,

उन हाथों में बंदूके तलवारे देखोगें !!

हर घर से देशप्रेम के बंदे,

मुख से बंदे मातरम बंदे मातरम…..

हाथों से बंदूके तलवारें वोलेगी !!!!!

ललकार

February 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदा की ललकार का वल कहाँ?
मृत्यु का आवाहन करते हों?
आत्ममंथन कर स्वयं विचार करो?
नारी सम्मान में कितने शीष कटते है?
इतियास पन्नो पर आहाकार करते हो?
मन चंचल मे क्या क्या उमडता है,
पर कितना पटल पर उतरता है।।
व्यक्ति के प्रति क्या विचार रखते है,
मन की डोर स्वयं के हाथो में रखते है।।
क्यों वनाता भंसाली मसाला ,
यह उस सोच पर तमाचा है?
एक प्रश्न मेरा योद्धाओं से है,
इतियास के आवाहन पर उठी तलवारे?
जिंदा की ललकार का वल वनो।।
यह शोर्य जव पालोगे दिखलाओगे,
तव ही योद्धाओ कहलाओगे।।
सिर्फ राजनीति करने का खेला है,
तो समझो तुम्हारा अतन नही पतन होगा।।
हर नारी को पद्मावती नही लक्ष्मीवाई का,
आवाहन वीरागना देखना चाहते है।।
जौहर नहीं अवला नहीं मर्दाना का,
चौला चण्डी का आवाहन चाहते है।।
भेडियों के झुण्ड में शेरनी की दहाड,
तलवार की ललकार वल का प्रहार चाहते है।।
जौहर आत्मदाह नहीं भेडियो की मृत्यु,
रक्त से धरा को वतलाना चाहते है।।
दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती से निकलके,
काली चण्डी आक्रोश जगाना चाहते है।।
याद करो द्रोपती को सभा में हुई लाजवत,
आत्मदाह नहीं महाभारत विध्वंस कराया था।।
सीता जी पर दृष्ठी पढी रावण की,
रावण की लंका दहन वध करवाया था।।
याद करो और वीरागंनाओ को वीरा,
रोम रोम में लक्ष्मीवाई सा शोर्य भरना है।।
कलयुग के वार का वार आत्मदाह नही करना हैं,
जीके भेडियों का प्रतिहार करना है।।
रोम रोम में पद्मावती नही लक्ष्मीवाई सा,
जौहर नहीं वीरागंनाओ को भरना है।।

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