बीते पल

June 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझको अब ये भी खबर नहीं सहर कब शब में ढलती है,
वो इन्तेज़ार के हाथों सौंपकर मेरे दिन के चारों पहर गए |