बचपन

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

बचपन की एक प्यारी छवि, जो आज तुम्हें मैं बतलाता हूं।
मन कल्पना के दर्पण में, उसे देख मैं सुख पाता हूं।
गांव की वह प्यारी गलियां, जिसमें बचपन का नटखटपन है।
खट्टे मीठे ताने बाने है, मित्रों के वह अफसाने हैं।
क्या बचपन है क्या मंजर है, जिसमें हमको ना कोई गम है।
नादानी नटखटपन और पवित्रता ना ईश से कम है।
वह गलियों की दादी नानी, वह अनुशासन की प्रतिछाया, उनसे कौन करे मनमानी।
पर साथ ही प्रेम की मूरत, और वात्सल्य की दानी।
जिनके परप्यारे भी अपने, यह कैसी है छवि न्यारी।
हंसते खेलते खाते पीते कैसे बचपन बीत गया, सब अपने थे नहीं पराए सबसे सबका मीत गया।
आज बैठ जब दूर विदेश में उस छवि को मैं ध्याता हूं,
आंखों में बचपन बस जाता मानो मैं ईश्वर पाता हूं।