by Ishu

ज़माना बदल गया

March 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो ज़माना गया जब एक
नारी अपने हक़ के लिए लड़ा करती थी।
वो ज़माना गया जब एक नारी
अपनी जगह बनाने के लिए मरा करती थी।

आज की नारी इतनी सक्षम है
कि गलत को गलत कह सके
आज की नारी इतनी सक्षम है
कि गलत को सही कर सके ।

उसके खिलाफ खड़े होने वालों को
करारा जवाब दे सके
हर चीज़ मे दोषी मानने वालों को
तिनके की तरह उछाल सके।

प्यार करो तो
प्यार देने में वो पीछे नहीं
इज़्जत दो तो
इज़्जत देने मे वो पीछे नही।

अात्मनिर्भर है आज की नारी
उसे अपनी खुद्दारी है बहुत प्यारी
चुप नहीं बैठेगी अबला नहीं है
ईंट का जवाब पत्थर से देगी
सबला वही है।

फर्ज़ निभाना जानती है तो
पलट वार भी कर सकती है
सेवा करना जानती है तो
भस्म भी कर सकती है।

उसे दुनिया में कमज़ोर
न समझ ऐ इंसान
दुनिया की है यह हकीकत
उसकी है अपनी अलग पहचान ।

by Ishu

अपने आप की तलाश

February 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

मैं तितलियों की तरह
उड़ना चाहती थी
मैं फूलों की तरह
मुस्काना चाहती थी
मैं इंद्रधनुष के रंगों सा
बिखरना चाहती थी
पर………
ज़िम्मेदारियों की ज़जीरों ने
मुझे कैद कर लिया
घर गृहस्ती की बेड़ियों ने
मुझे जकड़ लिया

पूरा घर मेरे कहने से
चलता था
सुबह उठने से लेकर सोने तक तिनका भी अपनेआप नहीं हिलता था

युवावस्था कब बढ़ते बढ़ते
अधेड़ावस्था तक पहुंच गई
ज़िदगी यूं ही जीते जीते
कब दो लोगों में सिमट गई

आज उस कगार पर खड़ी हूं
जहां सोचने पर अकेलेपन का
एहसास है
आज उस मुकाम पर खड़ी हूं
जहां अपनेआप को न गिरने देने
प्रयास है

आज…..
मेरी प्रतिज्ञा है
मैं खुद को तलाशूंगी
आज मेरी प्रतिज्ञा है
मैं अपनेआप को संवारूंगी
तितली की तरह
पंख फैला कर उड़ूंगी
फूल की तरह
खिलखिलाउंगी
इंद्रधनुष के रंगों सा
प्यार बिखराऊंगी
आसमान को छूने के लिए
दोनों हाथ बढ़ाऊंगी

जो ख्वाब अधूरे रह गए थे
उनको पूरा करने के लिए
प्रयास में कमीं नहीं लाऊंगी

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