by Haseen

“मुझे राहत बन जाना हे”

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

उल्झे हुए रास्तो से, मुझे अंजाम तक जाना हे,
मंज़िल ना जाने कहा गुम हे, ना जाने किस राह गुज़र जाना हे..

मे थका हारा दर ब दर, पाओं मे भी चुभन सी हे,
हाल ए गरदिश का साया, सांसे भी अब सहम सी हे!

रुकना ठहरना अब बस मे नही, मुझे गरदिशो को पार लगाना हे,
करके समझौता पेरो के छालो से, खुद को रूहानी बेदाग बनाना हे..!

मेरे अहसास मेरे जज़्बात, करेगे तज़किरा इक दिन,
करुगा तज़किरा इक रोज़, मेरी मासूम सी ख्वाहिशो का.!

सफ़र बाकि हे मुश्किल भी, इलाही, सफ़र आसान बनाना हे….
मुश्किलो भरे इसे दोर मे “राहत”, मुझे राहत बन जाना हे !!!

all right reserved
*Rahat Haseen Khan*
(Haseen Ziddat)

by Haseen

खून का बदला

September 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम जब जब गिराओगे लाशें मैं तब तब ज़िंदा हो जाऊंगा,

शक्ल बदलेगी मगर तुम्हें हर शय मे, मैं ही नज़र आऊंगा l

 

 

मैं सपूत हूं उस मां का जिसकी मिट्टी ही मेरा गुरूर है,

दफ्न होकर उस मिट्टी में मैं मर के भी अमर हो जाऊंगा l

 

 

सुनो ऐ जवानो!, मेरी शहादत को तुम यूं ज़ाया ना जाने देना,

मैं जो लडाई छोड़कर गया हूं उसे अंजाम तक पहुंचा देना l

 

 

वो नामर्द पीठ पीछे ही वार करना जानते हैं,

तुम सामने छाती ठोक उनकी उन्हें वार करना बता देना l

 

 

सुनो ऐ दिल्ली!, अब तुम भी ये ज़ुल्म ओ सितम बंद करो,

बहुत मिल लिये गले उनसे अब उनकी चमचा गिरी बंद करो I

खून तो तुम्हारा भी खौलता होगा उन देहशतगर्दो की करतूतों से,

एक के बदले दस सर दो वरना ये कडी निंदा करना बंद करो………………ll

   

 

             -हसीन ज़िद्दत

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