Ishwar Patel
मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा
September 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैने माना, ओ रे कान्हा, दुनिया पल का आना- जाना,
पर है ठाना, दूँगी ताना, अब फिर जो तूने न माना,
तूने राधा के संग बाँधा, हो आधा पर प्रेम को साधा,
बोल, ये जो प्यार है… केवल देवों का अधिकार है ?
जिसका न रूप, ना आकार है …
निर्विघ्न चीत्कार है …
बिन अस्त्र का प्रहार है..
समय की मार .. हर बार की हार … मात्र हाहाकार…..
क्या केवल देवों का अधिकार है?
किन्तु अब मेरी बारी है, अब पूरी ही तैयारी है …
टूट गयी है शक्ति, मेरी अर्चना नहीं हारी है…
सुन ले…..जब तक प्राप्त नहीं अब प्यार है,
जिस पर मेरा अधिकार है !
तेरी पूजा नहीं स्वीकार है …
दूँगी ताना, अब है ठाना, जो तू मेरी बात न माना,
मेरी कुट्टी तुमसे कान्हा ….
– Ishwar
Prasoon Joshi’s Powerful Poem For The Daughters
August 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
शर्म आ रही है ना
उस समाज को जिसने उसके जन्म पर
खुल के जश्न नहीं मनाया
शर्म आ रही है ना
उस पिता को उसके होने पर
जिसने एक दिया कम जलाया
शर्म आ रही है ना
उन रस्मों को उन रिवाजों को
उन बेड़ियों को उन दरवाज़ों को
शर्म आ रही है ना
उन बुज़ुर्गों को
जिन्होंने उसके अस्तित्व को
सिर्फ़ अंधेरों से जोड़ा
शर्म आ रही है ना
उन दुपट्टों को
उन लिबासों को
जिन्होंने उसे अंदर से तोड़ा
शर्म आ रही है ना
स्कूलों को
दफ़्तरों को
रास्तों को
मंज़िलों को
शर्म आ रही है ना
उन शब्दों को
उन गीतों को
जिन्होंने उसे कभी
शरीर से ज़्यादा नहीं समझा
शर्म आ रही है ना
राजनीति को
धर्म को
जहाँ बार बार अपमानित हुए उसके स्वप्न
शर्म आ रही है ना
ख़बरों को
मिसालों को
दीवारों को
भालों को
शर्म आनी चाहिए
हर ऐसे विचार को
जिसने पंख काटे थे उसके
शर्म आनी चाहिए
ऐसे हर ख़याल को
जिसने उसे रोका था
आसमान की तरफ़ देखने से
शर्म आनी चाहिए
शायद हम सबको
क्योंकि जब मुट्ठी में सूरज लिए
नन्ही सी बिटिया सामने खड़ी थी
तब हम उसकी उँगलियों से छलकती रोशनी नहीं
उसका लड़की होना देख रहे थे
उसकी मुट्ठी में था आने वाला कल
और सब देख रहे थे मटमैला आज
पर सूरज को तो धूप खिलाना था
बेटी को तो सवेरा लाना था
और सुबह हो कर रही ।
– Prasoon Joshi