ऑंखें तेरी खुलीं

June 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऑंखें तेरी खुलीं हैं पड़
तू जाग कर जगा नहीं
अपनी सुबह में भांपना
मेरा हमसफ़र अब है कहाँ
तू पीछे रह गया कहाँ