Poems of the Month

तो अच्छा हो (July, 2015)

ज़रा कुछ देर रहमत हो सके तो अच्छा हो,
ज़रा मन शांत होकर सो सके तो अच्छा हो…..

काटी है रात तुमने भी ले-ले के करवटें (August, 2015)

काटी है रात तुमने भी ले-ले के करवटें
देखो बता रही हैं, चादर की सलवटें।…..

मेरी याद आएगी (September, 2015)

क़भी जब गिर के सम्भ्लोंगे  तो मेरी याद आएगी ,

कभी जब फिर से बहकोगे  तो मेरी याद आएगी।…

एक अधूरा बचपन (October, 2015)

आंधी की आग में जला था एक घर,

हँसी थी गई,  खिलौने थे टूटे, छूटा था एक बचपन !….

Punctuation (November, 2015)

Ever since I met you I believed I have only learnt the
Art of using correct syntax (what we call
Grammar but I am a coder so) and words in
Sentences, but I apprehended now that beyond….

सच का साक्षात्कार (December, 2015)

कल अनायास मिला राह में
दीन – हीन ; कातर
याचक—सा खड़ा : सच
उसने आवाज़ लगाई —
“ मुझे रास्ता बताओ ….. भाई ! “…..

माँ-बाप की लाडो (January, 2016)

ज्यौं जोगि छोड़े दुनिया को
त्यों अपनी दुनिया छोड़ आई हूँ
मैं तेरी जोगन हो आई हूँ
अपना व्याह रचा आई हूँ….

” भूख ” (February, 2016) 

गरीबी ख़ुद के सिवा, औरों पे असरदार नहीं होती;
शायद इसीलिए भूखों की, कोई सरकार नहीं होती !!.
महज़ दो वक़्त की रोटी, और चन्द पैरहन तन पे;
फक़ीरों को इससे ज्यादा की, दरकार नहीं होती !!….

“मैं तो जनगायक हूँ किसानों की पीड़ा गाता हूँ” (March, 2016)

भूखे मरते अन्नदाता की करूण कथा सुनाता हूँ
किसानों की कहानी पर आंसू हर रोज बहाता हूँ
…….
मैं तो जनगायक हूँ किसानों की पीड़ा गाता हूँ….

देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है (April, 2016)

देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है
इस तरह घाव दिखाना भी नहीं अच्छा है

हम खतावार नहीं खता फिर भी मानी
दिल बिना बात दुखाना भी नहीं अच्छा है….

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