एक संवाद तिरंगे के साथ।
जब घर का परायों का संगी हुआ। क्रोधित तेरा शीश नारंगी हुआ। ये नारंगी नासमझी करवा न दे। गद्दारों की गर्दने कटवा न दे।। साँझ को अम्बर जब श्वेत हुआ। देख लेहराते लंगड़ा उत्साहित हुआ।। श्वेताम्बर गुस्ताखी करवा न दे। मेरे हाथों ये तलवारें चलवा न दे।। तल पे हरियाली यूँ बिखरी पड़ी। खस्ता खंडहरों में इमारत गड़ी।। ये हरियाली मनमानी करवा न दे। गुलमटों को अपने में गड़वा न दे।। तेरा लहराना मुसलसल कमाल ही है। तेरी भ... »