क्रांतियुवा
खल्क ये खुदगर्ज़ होती। आरही नज़र मुझे।। इंकलाब आयेगा ना अब। ये डर सताता अक्सर मुझे।। अशफ़ाक़ की,बिस्मिल की बातें। याद कब तक आएँगी।। शायद…
खल्क ये खुदगर्ज़ होती। आरही नज़र मुझे।। इंकलाब आयेगा ना अब। ये डर सताता अक्सर मुझे।। अशफ़ाक़ की,बिस्मिल की बातें। याद कब तक आएँगी।। शायद…
जब घर का परायों का संगी हुआ। क्रोधित तेरा शीश नारंगी हुआ। ये नारंगी नासमझी करवा न दे। गद्दारों की गर्दने कटवा न दे।। साँझ…
स्वतंत्र हैं हम देश सबका। आते इसमें हम सारे हर जाती हर तबका।। सोई हुई ये देशभक्ति सिर्फ दो ही दिन क्यूँ होती खड़ी। एक…
यह कविता एक ऐसे आवास के विषय में है जो सिर्फ कवि या लेखकों के मन में निर्मित है। कवियों के उस आवास को मैंने…
अमरकंठ से निकली रेवा अमृत्व का वरदान लीए। वादियां सब गूँज उठी और वृक्ष खड़े प्रणाम कीए। तवा,गंजाल,कुण्डी,चोरल और मान,हटनी को साथ लीए। अमरकंठ से…
ये बूढ़ी आँखें। ये सब कुछ तांके।। ये सल भरे पन्ने। पुरानी किताबें।। विशाल से वृक्ष थे। जो अब झुक गय हैं।। दौड़ते धावक…
दुबले-पतले,गोरे-काले। तन पर कपड़े जैसे जाले।। दिख जाते हैं। नुक्कड़ पर,दुकानों पर। ढाबों पर,निर्माणधीर मकानों पर।। देश में इन की पूरी फौज। बिना लक्ष्य ये…
जब आसपास की खट पट खामोशी में बदलती है। जब तेज़ भागती घडी की सुइंया धीरे धीरे चलती है।। दिनभर दिमाग के रास्तों पर…
प्रद्युम्न चौरे
इस बार बादलो को खोजा हैं पहले खुद छा जाते थे इस बार शब्दों को ढूंढा है पहले खुद आ जाते थे बेतुके से लगने…
गणतंत्र है हम देश सबका। आते इसमें हम सारे हर जाती हर तबका।। सोई हुई ये देशभक्ति सिर्फ दो ही दिन क्यूँ होती खड़ी।…
आकाश से आती हैं जेसे ठंडी ठंडी ओस की बुंदे। नन्हे नन्हे बच्चे आते हैं आँखे मूंदे।। इन बूंदों को सँभालने वाली वो कोमल से…
आँखे तुझ पर थम गई जब तुझको बहते देखा। सोच तुझमे रम गई जब तुझको सेहते देखा ।। अपनी कलकल लहरों से तूने प्रकृति को…
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