क्रांतियुवा
खल्क ये खुदगर्ज़ होती। आरही नज़र मुझे।। इंकलाब आयेगा ना अब। ये डर सताता अक्सर मुझे।। अशफ़ाक़ की,बिस्मिल की बातें। याद कब तक आएँगी।। शायद जब चेहरे पे तेरे। झुर्रियां पड़ जाएँगी।। क्या भूल गए हो उस भगत को। जान जिसने लुटाई थी।। तेईस में कर तन निछावर। दीवानगी दिखाई थी।। वीरता के रास्तों से आज़ादी घर पर आई थी। बेड़ियों के निशां थे सर पर और खून में नहाईं थी।। आज सूरज वीरता का। बादलों में गुम है।। आधुनिक समय का... »