अकेला हिन्दुस्तान
उथल-पुथल जमीं कहीं पे, हो रहा शिथिल अभिमान I
प्रतीत तो ये हो रहा, आज अकेला हिन्दुस्तान II
यहाँ लुट रही है अस्मिता, पर उनको ये परवाह क्या ?
टूट जाए आशियाँ पर, उनके लिए ये बात क्या ?
दमन किसी के ख्वाबो का, पल पल हो रहा यहाँ;
हनन किसी के साँसो का, हो तो उन्हें परवाह क्या ?
उम्मीद थी जिनसे हमे, इन मुश्किलों को सुलझाने में I
वो मशगूल है सदा कहीं , एक-दूजे को मनाने में II
भँवर में दीन-हीन के, रहा भटक ये नौजवान I
तेरे-मेरे के फेर में, उलझन मे है भारत महान II
वो सरहदों पे देश के खातिर है नित लड रहे I
सर काट ही नही वरन् ये शीश भी कटा रहे I
हम मौन है उनके लिए न अश्रु तनिक बहा रहे I
फिर भी वो हमारे लिए पत्थर खुशी से खा रहे II
खुद सोच न सके उत्थान राष्ट्र का,
वो बैरी भी उन्हें ,गौरव सिखा रहे II
अब जागना पड़ेगा तुम्हें, नौजवान हिन्द के
तलवारे भी उठानी होगी ,पर हद में रह विवेक के
अब रंग जाति वर्ण के बंधन को काटकर,
व्याप्त लघु सोच की दासता को लांघकर ,
इस राष्ट्र का परचम लहराना ही होगा,
हमें तोडने वालो को यह बताना ही होगा,
उर्दू की है सौगात जिसे, हिन्दी का है वरदान I
अनेकता में एकता, मेरे हिन्द की पहचान II
::कायल्पिक::
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Udit jindal - August 6, 2016, 2:43 am
bahut khoob
Himanshu - August 6, 2016, 7:53 pm
Thanks
Himanshu - August 6, 2016, 7:54 pm
Thanks
Puneet Mittal - August 6, 2016, 2:56 am
nice
Ajeet Singh Avdan - August 6, 2016, 9:14 am
वाह,बहुत खूब ।