अभेद में भेद
किसने मानव को सिखाया,
करना अभेद में भेद।
एक निराकार परमात्मा,
अनन्त, अविनाशी, अभेद,
हम मानव झगड़ रहे ,
कर उसके भेद।
एक हीं जमीं एक आसमां,
एक हीं सूरज- चाँद,
फिर क्यूँ मानव झगड़ रहा,
खुद को सीमाओं में बाँध।
कैसा देश कैसा विदेश,
एक हीं तो है,
हमारा परिवेश ।
क्या मानव रखेगा ,
अब धूप- छाँव का,
भी बहिखाता सहेज।
एक सी मानव संरचना,
धमनियों में संचारित,
रक्त का रंग भी एक।
फिर क्यूँ करता मानव,
एक- दूजे में भेद।
किसने मानव को सिखाया,
करना अभेद में भेद।।
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2015/10/04/
bemishaal…very nice
Thanks Anirudh ji
Nice
Thanks Sridhar ji