आए न रास किश्तों के क़त्ल
आए न रास किश्तों के क़त्ल ,क़त्ल हो तो एक बार हो
मेरे क़ातिल दुआ मेरी ,तेरे खंजर की न खत्म कभी धार हो
देते है खुद को धोखा ,औरो के फरेब से क्या बच पाएंगे वो
अपने गिरेबां में झाकने से जो गुरेज करें,वो खुद से क्या शर्मशार हो
चल के बैठे फिर उस महफ़िल पे क्यों गैरत के खिलाफ
उस महफ़िल कभी न जाना जहाँ तेरे वज़ूद की मजार हो
तिनके तिनके से बिखर जाते है न जाने क्यों ये नशेमन
किसी नशेमन का इन आंधिओं से इस कदर न प्यार हो
आ लेके चल खाक अपने सफर की निशानी समझ ‘अरमान’
ना जाने किस मोड़ पे आके , यही खाक तेरी ग़मगुसार हो
राजेश ‘अरमान’
sab kuch kisto me hi to milta he…tab maut kyon nahi
nice