सावन के एक एक बूंद जो गिरा मेरे होंठो पे।
कैसे बयां करू अपनी दास्तां इन सुर्ख होंठो से।।
उन्हें क्या पता कब चढी सोलहवां सावन मुझ पे।
आ कर एक मर्तबा देख तो ले क्या गुजरा है इस दिल पे।।
बहकने लगे है मेरे कदम यही बेईमान फीजाओ में।
उलझन में फंस गए हम इसी बरस के सावन मे।।