आवारा सावन
सावन के एक एक बूंद जो गिरा मेरे होंठो पे।
कैसे बयां करू अपनी दास्तां इन सुर्ख होंठो से।।
उन्हें क्या पता कब चढी सोलहवां सावन मुझ पे।
आ कर एक मर्तबा देख तो ले क्या गुजरा है इस दिल पे।।
बहकने लगे है मेरे कदम यही बेईमान फीजाओ में।
उलझन में फंस गए हम इसी बरस के सावन मे।।
Nice
Thanks
Nice
Nyc
वाह
Good