आश्ना कब तेरे शहर
आश्ना कब तेरे शहर में कोई मिलता है
जिसको देखो वो अजनबी सा मिलता है
हमने देखी है इस जहाँ में ऐसी दरियादिली
बिन मांगे ही झोली में गम हज़ार मिलता है
तिरी जुस्तजू जन्नत की दुआ से कम नहीं ,
कहाँ हासिल किसे यहाँ, यूँ सबकुछ मिलता है
फलसफा इज़्तिरार का कब इन्सां को सुकून देता है
इन्सां अपने ही अंदर के इन्सां से नहीं मिलता है
सब कुछ रह जायेगा जमीं पर सब जानते है
कहाँ जेब कोई सिले हुए कफ़न में मिलता है
सब की अपनी सी दुनिया है बस अलग अलग
अपने सच के साथ कहाँ ,कोई किसी से मिलता है
हर्ज़ कुछ भी नहीं आँखों में रख ले ‘अरमान ‘
बंद आँखों से ही उस जहाँ में ख़ुदा मिलता है
राजेश’अरमान’
Good
वाह