इक असीर सी जीस्त का
इक असीर सी जीस्त का पनाहगार हूँ मैं
जो कभी न मुक्कमल हुआ वो असफ़ार हूँ मैं
इख्लास का लिबास कहाँ मेरे नसीब में
अपने ही इत्लाफ़ का बस इक क़रार हूँ मैं
क़ल्ब कसूर माने तो मुश्किलें आसां हो
अपने ही बेमुराद क़ल्ब का गुनाहगार हूँ मैं
काफिलों की रौनक से हो गया हूँ फना गिरियां
बस काफिलों के सफर का कोई गुबार हूँ मैं
बैठे है चकां लहूँ के मरज़े-ए-इलाज को
किसी चारागर के हुनर का ज़िन्हार हूँ मैं
हक़ अदा भी वफ़ा का कैसे करता ‘अरमान ‘
गैहान की क़ैद में ,खुद गिरफ्तार हूँ मैं
राजेश’अरमान’
गैहान= संसार, सृष्टि
असीर= कैदी, बन्दी
इख्लास= प्रेम, सच्चाई, शुद्धता, निष्ठता,
क़ल्ब= दिल, मन, आत्मा, बुद्धि
चकां= टपकता हुआ, स्त्रावण
इत्लाफ़= हानि, उजड़ना, नाश
ज़िन्हार= सावधान!
Good
वाह