एक टीस सी है

एक टीस सी है उठती,
जिगर में सुलगती,
न बुझती, न जलती,
जैसे कोई चिंगारी,
तिनके की आस में,
हो हवा की तलाश में ।
एक धुन्ध सी है,
जो छँटती नहीं, जैसे
हो अनसुलझी रहस्य,
जीवन सुलझती नहीं ।
एक भॉप सी हैं यादें,
जो रवाँ-रवाँ कर उठती,
मेघ बन छाँयी रहती,
यदा-कदा बरस जाती ।
एक साय सी हैं आशाएँ,
जीवन में रस घोलती,
कभी मदहोश करती,
तो कभी होश उड़ती ।
एक प्रश्न से हैं क्रिया-कलाप
जिनका नहीं कोई जवाब,
कठपुतली से बँधे हम,
डोर के सहारे निराधार ।
एक टीस सी है उठती,
जिगर में सुलगती,
न बुझती, न जलती ।।

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