एक वो बचपन
एक वो बचपन था अल्हड सा
आज तो सावन भी है पतछड सा
थक गए ढूँढ़ते अब तो पल वो प्यारे
खुला आसमान भी मिला पिंजरे सा
कोई वज़ह नहीं थी कभी दौड़ने की
अब तो चलता भी हूँ दौड़ने सा
कहाँ छूट गए वो सुहाने दिन
था जीवन फूलों की तरह महका सा
राजेश ‘अरमान’
man me gul khilane wali kavita..nice
thanx
nice one bro!
thanx
nice poem